Friday, July 31, 2015

Relation between Science and religion

प्रकृति-धर्म और विज्ञान का जनक

जब हम प्रकृति की बात करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में आस पास के वातावरण की छवि उभर आती है...पहाड़, झरने, नदियाँ, समुद्र, जीव जन्तु, पक्षी,मानव जीवन...इत्यादि...यहाँ तक कि पूरे ब्रह्माण्ड की कल्पना तक कर लेते हैं हम। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य और प्रकृति के बीच बहुत गहरा और मजबूत रिश्ता है। और हो भी क्यों न क्यों कि मनुष्य ने जो कुछ भी सीखा है वह प्रकृति से ही तो सीखा है और सीखता चला आ रहा है चाहे वह धार्मिक बातें हो या वैज्ञानिक सिद्धांत। इसका अभिप्राय यह है कि विज्ञान और धर्म दोनों का जनक प्रकृति ही है।

मानव की आंतरिक चेतना का मार्गदर्शन धर्म करता है। आखिर सभी धर्मों से सर्वोपरि जिस मानवता की बात हम करते हैं वो सभी बातें हम किसी न किसी धर्म से ही तो सीखे हैं। वहीँ भौतिक चेतना का मार्गदर्शन विज्ञान करता है। विज्ञान प्रकृति से हमें कुछ ऐसी बातें सिखाता है जो हमारी आस्था का केंद्र बन जाता है और दोनोँ एक दूसरे के पूरक बने हुए है। यहाँ विज्ञान को प्राथमिकता देने से मेरा मत यह नहीं है कि विज्ञान धर्म से ज्यादा श्रेष्ठ है। मनुष्य के जीवन में संतुलन के लिए विज्ञान और धर्म दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है।

जहाँ एक ओर धर्म, विज्ञान और प्रकृति आपस में सम्बंधित हैं वहीँ विज्ञान और धर्म में भी बहुत गहरा सम्बन्ध है। जहाँ एक ओर बिना विज्ञान के कोई धार्मिक काम नहीं हो सकते वहीँ दूसरी ओर विज्ञान के खोजों में लगे वैज्ञानिकों को प्रेरणा धर्म और अध्यात्म से ही मिलती है। अतः दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और हो भी क्यों न क्योंकि दोनों ही प्रकृति से पैदा हुए है। प्रकृति में इन दोनो का वही स्थान है जैसे मनुष्य के दोनों हाथ होते है।

परंतु यहाँ चिंता का विषय यह है कि कुछ अवसरवादियों ने स्थिति का फायदा उठा कर धर्म और विज्ञान के बीच में एक गहरा खाई बना दिया है। जिसमें मानव समाज डूबता नजर आता है। एक तरफ विज्ञान के प्रमाणित सिद्धान्त तो दूसरी तरफ धर्म के नाम पर उत्त्पन्न किया गया अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता।

इस भ्रम की स्थिति में सम्पूर्ण मानव जाति का विकास और कल्याण नहीं हो पा रहा है। और इसका दुष्परिणाम यह है कि मनुष्य इस जंजाल में उलझा रहता है कि विज्ञान सत्य है या धर्म। परंतु सत्य तो यह है कि दोनों सत्य हैं , गलत तो अन्धविश्वास और कुरीतियां हैं। जैसे किसी मनुष्य के दोनों हाथ अलग नहीं किये जा सकते है ठीक उसी प्रकार धर्म और विज्ञान को अलग नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह दोनों प्रकृति के दोनों हाथ है।

जिस प्रकार विज्ञान में प्रत्येक सिद्धांत की प्रयोगात्मक पुष्टि की जाती है और किसी सिद्धान्त की पुष्टि न हो पाने पर उस सिद्धांत को नगण्य मान लिया जाता है ठीक उसी प्रकार धर्म में फैले हुए अन्धविश्वास और कुरीतियों को मिटाना होगा। और इस कार्य में समाज को प्रत्येक वर्ग की आवश्यकता है खासकर युवाओं की। यह आज के युवाओं के लिए एक चुनौती है कि वह लोगों को जागरूक करें और मानव जीवन का बेड़ागर्क होनें से बचायें। हमारे देश में फैली हुई जाति और धर्म की राजनीति से बचायें। जिस दिन मनुष्य विज्ञान और धर्म के बीच की खाई पाट लेगा उसदिन वह खुद विकास के पथ पर अग्रसर हो जायेगा और चलता ही चला जायेगा!!!

....रवि प्रकाश गुप्ता

Friday, July 3, 2015

Migration of people from villages

जब मैं शहर में रोजगार के लिए भटक रहे लोगों की भीड़ को देखता हूँ तो मुझे लगता है कि ये हमारे देश के सिस्टम का दोष है कि वह जनसँख्या के अनुपात में लोगो को रोजगार के अवसर नहीं उपलब्ध करा पा रहा है। मुझे मजदूर वर्ग से लेकर उच्च शिक्षित युवा वर्ग तक के लोग रोजगार के लिए भटकते हुए दिखाई देतें हैं।
ये तो हुआ शहर का परिदृश्य, अब मैं आपको ग्रामीण परिदृश्य दिखाना चाहूँगा।
अभी मैं अपने गाँव गया और वहाँ चल रहे कृषि कार्य को देखा और उसे समझा तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।
आज कल ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य बहुत जोरों से चल रहा है। खरीफ की बुवाई चल रही हैं। मैंने यहाँ देखा की धान के रोपाई के लिए श्रमिक ढूढ़ने पर नहीं मिल रहे। और कृषि के लिए ही नहीं बल्कि अगर आपको किसी और कार्य के लिए भी श्रमिक चाहिए तो भी जल्दी नहीं मिलेंगें।
अब यदि हम गौर करें तो हमें कितना विरोधाभास देखने को मिलेगा कि एक तरफ लोग रोजगार पाने के लिए लाइन लगाये खड़े है और दूसरी तरफ रोजगार के लिए लोग नहीं मिल रहे है।
अब मुझे समझ में नहीं आता है कि इसमें किसका दोष है, लोगों का या सिस्टम का?
मैंने शिक्षित लोगों को मनरेगा से भी कम वेतन पर, यहाँ तक कि उससे आधे वेतन पर भी काम करते हुए देखा है। एक तरफ कृषि कार्य को करने के लिए लोग नहीं हैं और दूसरी तरफ लोग इतने कम वेतन पर भी कार्य करने को तैयार हैं।
अभी हाल में ही WHO ने एक रिपोर्ट जारी किया है कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा तनावग्रस्त लोग भारत में रहते हैं, करीब 25 प्रतिशत लोग। मतलब प्रत्येक 4 लोगों में 1 लोग तनावग्रस्त हैं। मुझे इसका मुख्य कारण बेरोजगारी ही प्रतीत होता है।
मुझे समझ में नहीं आता है कि लोग इतनी छोटी मोटी नौकरी करके अपने आप को कैसे संतुष्ट कर लेते हैं, जबकि उनके पास कृषि या अन्य रोजगार को चुनने का विकल्प होता है। हमारे देश के नीति निर्माताओं को किसी ऐसी योजना का निर्माण करना चाहिए जिससे कृषि और लघु उद्दोग से विमुख हो रहे लोगों को पटरी पर लाया जा सके। और गाँव से हो रहे पलायन को रोका जा सके।

जय हिन्द!

आपका
रवि प्रकाश गुप्ता

Wednesday, June 17, 2015

English in India

किसी भी प्रतियोगी परीक्षा का यदि पाठ्यक्रम देखा जाये तो सब जगह अंग्रेजी भाषा सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होता हैं और सफल होने के लिए निर्णायक भी साबित होता है।
मुझे समझ में नहीं आता है कि इसे हम अपनी भाषा के महत्व को खो देने का दुर्भाग्य समझे या विदेशी भाषा के अध्ययन का सौभाग्य!

कृपया अपने विचार व्यक्त करें।

Wednesday, April 29, 2015

Our Old technology

#NepalEarthquake #Uttarakhand #OldTechnology vs #MacaulaySystem

नेपाल में आये त्रासदी से मैं काफी आहत हूँ। मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस त्रासदी में मारे गए सभी लोगों के आत्मा को भगवान शांति दें। और वहां जल्द ही जन जीवन सामान्य हो।
परंतु सोचने की बात यह है कि चाहे उत्तराखंड का बाढ़ हो या नेपाल का भूकम्प, दोनों त्रासदी में भगवान भोलेनाथ के मंदिर को कुछ न हुआ। कुछ लोग इसे भगवान भोलेनाथ की कृपा कहेंगें और मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं, अंततः कुछ तो बचा इस भीषण त्रासदी में।
परन्तु एक सिविल इंजीनिअर के तौर पर मैं यह कहना चाहूँगा कि ये सभी उदाहरण भारतवर्ष के तकनीकी शिक्षा और शिल्पकला के अदभुत उदहारण हैं। हमें प्राचीन भारतवर्ष के ज्ञान विज्ञान पर गर्व होना चाहिए। अगर हम गुलाम न हुए होते तो आज हम विश्व में प्रथम स्थान पर होते।
अतः हमें अपने भारतवर्ष के शिक्षा प्रणाली पर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बदल कर हमें अपने शिक्षा प्रणाली से अध्ययन करने की आवश्यकता है। हमारे वेदों तथा ग्रंथो में अपार ज्ञान का भण्डार है, बस आवश्यकता है उस ज्ञान को पुनर्जीवित करने की।
हमारे इतिहास में अनेकों उदहारण हैं, जिससे हम कह सकते है कि अगर हम मैकाले शिक्षा प्रणाली से आज़ाद होकर अपने शिक्षा प्रणाली से अध्ययन करना प्रारम्भ करे तो फिर से हम बहुत तेजी से विश्व गुरु बन सकते है चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो, कला, विज्ञान, अध्यात्म आदि।
बस जरुरत इस बात की है कि हमें कुछ कुरीतियों और अंधविश्वासों को मिटा कर अपनी प्राचीन प्रणाली को लागू करना होगा।

जय हिन्द!!!

रवि प्रकाश गुप्ता

Monday, April 27, 2015

जीवन का बदलता लक्ष्य!

जब बच्चा छोटा होता है तो वह जो भी देखता है उसी से ही सीखना प्रारम्भ करता है। हमें याद है कि हमारे पिता जी हमको एकबार हमारे शहर बलरामपुर घुमाने ले गये थे। मै महज 5-6 वर्ष का रहा होगा। उन्होंने सब अच्छी जगहों पर घुमाया। वो मुझे जिलाधिकारी आवास पर ले गए और बताया कि जिलाधिकारी कौन होता है। जिलाधिकारी के ठाट बाट और अधिकारो की गिनती करवा दी पिता जी ने, और वो सब बाते सिद्ध भी हो गयी जिलाधिकारी महोदय के निकलते ही। अर्दली ने सफ़ेद चमचमाती एम्बेसडर कार का दरवाजा खोल जय हिन्द का सलामी ठोका फिर कई पुलिस जवानो ने भी। मै तो डर गया कि कहीं हम देश की सीमा पर तो नहीं खड़े है और पिता जी के ऊँगली को कस के जकड़ लिया। महोदय के जाने के पश्चात भी कुछ सिपाही सैल्युट मुद्रा में खड़े हुए थे। फिर सैर सपाटा करने के बाद मै घर लौटा। मै बहुत खुश था और मन ही मन जिलाधिकारी बनने का लक्ष्य बनाने लगा था। कक्षा में अव्वल आता था तो लोग पूछते थे कि बेटा बड़े होकर क्या बनोगे? मै तपाक से उत्तर देता था कि मै जिलाधिकारी बनूँगा।
परंतु यह क्या? कुछ दिन बाद ये पता चला कि जिलाधिकारी महोदय का ठाट बाट क्षणिक था। प्रशासन ने उनका तबादला करके उन्हें कहीं दूर भेज दिया था क्योंकि उन्होंने विधायक जी का कोई काम नहीं किया था।
फिर जब तरुणावस्था आयी, थोड़ा समझदार हुआ तो धीरे धीरे यह पता चला कि महोदय जी लोग विधायक जी, मंत्री जी के कठपुतली होते है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि अब मै जान चुका था कि कोई जिलाधिकारी कैसे बनता है, कितना मेहनत करना पड़ता है।
और फिर धीरे धीरे मेरे जिलाधिकारी बनने के सपने से मोहभंग होता गया। मै सोचने लगा कि ऐसे अधिकारी बनने से क्या लाभ जब आप स्वतंत्र मन से लोगो की सेवा न कर पाओ, और सत्ता लोलुपता में व्यस्त निरक्षरों और राक्षसों जैसे  चरित्र वाले नेताओं का जी हुजूरी करना पड़े।
हमारे ग्रन्थ कहते है कि विद्वानों की हर जगह पूजा होती है परन्तु वर्तमान परिवेश में मुझे तो यह केवल कोरे कागज में लिखा हुआ वाक्य प्रतीत होता है। यही हमारे देश का अभाग्य है!

जय हिन्द!!!

Wednesday, April 22, 2015

#Secular India

7_#धर्म निरपेक्ष भारत
कुछ लोगो, राजनैतिक दलों तथा कुछ नेताओं को यह बात अच्छी नही लगती, अगर इंडिया को  कोई हिन्दुस्तान कह दे। उन्हें हिन्दुस्तान शब्द से आपत्ति होती है क्योंकि हिन्दुस्तान शब्द से हिन्दू का बोध होता है। फिर वो सेकुलरिज्म का डंका बजा कर इस बात का विरोध करते हैं।
तो क्या हम अपने भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता, लोक संगीत, भारतीय कला, योग, आयुर्वेद, लोक नृत्य,परम्परागत भोज... आदि सब भूल जाये, क्योंकि हिन्दू धर्म का बोध तो उसमे भी होता है। हमारा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह एवम् उसके नीचे लिखा हुआ "सत्यमेव जयते" आदि सब हटा दिया जाये क्योकि हिन्दू धर्म का बोध तो उससे भी होता है।
क्या हम अपने भारत के वीर बलिदानियों, विद्वान और विदुषियों,महापुरुषों, ऋषिओं आदि को भुला दे क्योकि उनमे से अधिकतम लोग तो हिन्दू ही है।
फिर तो हमें नदियों तथा अन्य प्राकृतिक सम्पदाओं का नाम भी बदल देना चाहिये क्योंकि इनसे भी हिन्दू धर्म का बोध होता हैं। साथ ही साथ हिन्द महासागर का नाम भी बदल दिया जाना चाहिए क्योंकि यह नाम भी हिन्दुस्तान से ही प्रेरित है।

और जो भी लोग धर्मनिरपेक्षता का स्वांग रचते है वो सभी लोग माननीय उच्चतम न्यायालय का भी अपमान करते है क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है कि हिन्दू केवल एक धर्म ही नहीं बल्कि एक संस्कृति एवम् जीवन पद्धति है।

अरे छिछोरों कब तक धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश में धर्मवाद, जातिवाद का जहर घोलोगे???
जरा अपनी करनी से बाज आओ।

जय हिन्द!!!

Friday, April 17, 2015

अभिनव मनुष्य

रामधारी सिंह 'दिनकर' रचित कुरुक्षेत्र से संकलित...

यह मनुज, ब्रह्मण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश,

कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश,

यह  मनुज,  जिसकी   शिखा   उद्दाम,

कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम।

यह   मनुज,  जो   सृष्टि   का    श्रृंगार,

ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।

व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,

पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।

श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,

श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत।

एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान,

तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वाही विद्वान,

और         मानव       भी       वही।

सावधान मनुष्य! यदि विज्ञान है तलवार,

तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार।

हो चुका है सिद्ध है तू शिशु अभी अज्ञान,

फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान,

खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,

काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।

Monday, April 13, 2015

जन्मदिन

#जन्मदिन
जब हम किसी महापुरुष का जन्मदिन मनाते है तो हम उसके सिद्धान्तों, उपलब्धियों आदि का स्मरण करते है।
हम भी उसी सिद्धान्तों का अनुसरण करने का प्रयास करते है। तो मेरा मानना यह है कि क्यों न हम अपने जन्मदिन पर भी अपने लक्ष्यों, सिद्धान्तो का स्मरण करे और उसे पूर्ण करने का प्रयत्न करे। जन्मदिन मनाना बहुत जरूरी है। इसी बहाने अपने संबंधियों से मिलने उन्हें आमंत्रित करने का अवसर मिलता है। और युवा लोगो को तो मित्रो के जन्मदिन का बहुत प्रतीक्षा  रहता है। और हो भी क्यों ना क्यों कि जन्मदिन मनाने का अलग रिवाज ही जो है। बहुत से लोग अलग अलग तरीको से आनंद लेते है जन्मदिन का। ये तो बात हुई भौतिक आनंद का, परंतु जरा सोचिये कि क्या यह वास्तविक आनंद है। वास्तविक आनंद तो इसमें है कि भौतिक आनंद के साथ साथ अपने सिद्धान्तों, लक्ष्य ऐवम कर्तव्यों का भी स्मरण किया जाये। इस बात का विश्लेषण किया जाये कि हम अपने लक्ष्यों को कैसे प्राप्त करे, समाज के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, देश के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, परिवार के प्रति हमारी क्या जिम्मेदारी व क्या कर्तव्य ...आदि। अगर हम अपनी लक्ष्य को नही प्राप्त कर पा रहे है तो कहाँ हमारे अन्दर कमी है। उस कमी को दूर करने का प्रयास करे। मतलब सार यह है कि जन्मदिन को एक नया वर्ष मान कर मनाया जाये। इसदिन को एक गजब के आत्मविश्वास के साथ मनाया जाना चाहिए। पूर्णतया धनात्मक ऊर्जा के साथ नए पथ  का निर्माण करना चाहिए। तभी हम जन्मदिन का वास्तविक आनन्द ले सकते है।

Sunday, April 12, 2015

Way of Life

#Art, #Science, #Religion

For a complete balance life there should not be any confusion among Art, Science and Religion.
Art teaches us how to live, how to behave with others, how to enjoy life, how to be happy....and many more. Means Art can be related to Culture and civilization. If we see our past, in fact Indian Culture then we'll find that our temples, sculptures, palaces...etc. tells about our civilization and culture. Archaeologist predicts about civilization based on above. So we need to learn from that creatures. And India has lots of diversities in culture, civilization, religion etc. There are lot of stories which are finest stories in the world. We have proud on these things. But whenever we try to revive these stories through present physical means then always there is problem with  Religious Contractors.  Often they makes it serious controversial issue. For example present movies. Suppose if a Artist make a nude paintings then people raises their voice against him. Then what is Ajanta & Ellora caves, Khajurahao, Konarka etc. So just I want to say that these religious contractors creates nuisance for their own selfishness. One side they are saying that they are protecting our ancient culture and on second hand they create nuisance on truth. So there is need to be aware about truth.
Just learn from Art how to live and how to enjoy your physical and spiritual life.

Now let me write on science. Science only shows facts. It alarms people that don't be superstitious, just believe on facts. Science is very practical thing. Only Science can improve our standard of life. It provides new technologies which makes life easy. Due to science humans are reaching to other planets, launching satellites, making way in water and air, etc. which can be seen in your surroundings. And quoting science don't make a picture of Europe and America and other countries in your mind. Principles of science are also available in our scriptures. There is only need to explore. We couldn't explore because of slavery of centuries. There is lot of strength in India and Indians. And I believe that one day India shall regain its position of Vishwa Guru.  There is only need to recognize our potentials and to get opportunities to show our potential. There is need to modern India not to be superstitious, not to be lured by Religious contractors.

Now on Religion, I'll finish it in short. Religion gives us inspiration to grow, teaches us ethics, teaches us about our duties, and teaches us to work for betterment of society. And here society includes all human being, animals, birds.. and all natural things both living and non living.
On the name of religion don't be afraid from God. God never say to be afraid. These nuisance are created by Religious Contractors. God teaches us Love, Compassion, to be kind, to work for ignominies. 

So there is no ambiguity among #Art, #Science, #Religion.  Just need to be clear.