जब बच्चा छोटा होता है तो वह जो भी देखता है उसी से ही सीखना प्रारम्भ करता है। हमें याद है कि हमारे पिता जी हमको एकबार हमारे शहर बलरामपुर घुमाने ले गये थे। मै महज 5-6 वर्ष का रहा होगा। उन्होंने सब अच्छी जगहों पर घुमाया। वो मुझे जिलाधिकारी आवास पर ले गए और बताया कि जिलाधिकारी कौन होता है। जिलाधिकारी के ठाट बाट और अधिकारो की गिनती करवा दी पिता जी ने, और वो सब बाते सिद्ध भी हो गयी जिलाधिकारी महोदय के निकलते ही। अर्दली ने सफ़ेद चमचमाती एम्बेसडर कार का दरवाजा खोल जय हिन्द का सलामी ठोका फिर कई पुलिस जवानो ने भी। मै तो डर गया कि कहीं हम देश की सीमा पर तो नहीं खड़े है और पिता जी के ऊँगली को कस के जकड़ लिया। महोदय के जाने के पश्चात भी कुछ सिपाही सैल्युट मुद्रा में खड़े हुए थे। फिर सैर सपाटा करने के बाद मै घर लौटा। मै बहुत खुश था और मन ही मन जिलाधिकारी बनने का लक्ष्य बनाने लगा था। कक्षा में अव्वल आता था तो लोग पूछते थे कि बेटा बड़े होकर क्या बनोगे? मै तपाक से उत्तर देता था कि मै जिलाधिकारी बनूँगा।
परंतु यह क्या? कुछ दिन बाद ये पता चला कि जिलाधिकारी महोदय का ठाट बाट क्षणिक था। प्रशासन ने उनका तबादला करके उन्हें कहीं दूर भेज दिया था क्योंकि उन्होंने विधायक जी का कोई काम नहीं किया था।
फिर जब तरुणावस्था आयी, थोड़ा समझदार हुआ तो धीरे धीरे यह पता चला कि महोदय जी लोग विधायक जी, मंत्री जी के कठपुतली होते है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि अब मै जान चुका था कि कोई जिलाधिकारी कैसे बनता है, कितना मेहनत करना पड़ता है।
और फिर धीरे धीरे मेरे जिलाधिकारी बनने के सपने से मोहभंग होता गया। मै सोचने लगा कि ऐसे अधिकारी बनने से क्या लाभ जब आप स्वतंत्र मन से लोगो की सेवा न कर पाओ, और सत्ता लोलुपता में व्यस्त निरक्षरों और राक्षसों जैसे चरित्र वाले नेताओं का जी हुजूरी करना पड़े।
हमारे ग्रन्थ कहते है कि विद्वानों की हर जगह पूजा होती है परन्तु वर्तमान परिवेश में मुझे तो यह केवल कोरे कागज में लिखा हुआ वाक्य प्रतीत होता है। यही हमारे देश का अभाग्य है!
जय हिन्द!!!
Well said...
ReplyDeleteMy 'nana' had similar feelings regarding this post.People toil day and night to reach there and ultimately they are controlled by other people.
hmm... thank you
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