रामधारी सिंह 'दिनकर' रचित कुरुक्षेत्र से संकलित...
यह मनुज, ब्रह्मण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश,
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश,
यह मनुज, जिसकी शिखा उद्दाम,
कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम।
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार,
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।
व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।
श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत।
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान,
तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वाही विद्वान,
और मानव भी वही।
सावधान मनुष्य! यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार।
हो चुका है सिद्ध है तू शिशु अभी अज्ञान,
फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान,
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।
Working hard is the best thing
ReplyDeleteVery useful ����
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