Friday, July 3, 2015

Migration of people from villages

जब मैं शहर में रोजगार के लिए भटक रहे लोगों की भीड़ को देखता हूँ तो मुझे लगता है कि ये हमारे देश के सिस्टम का दोष है कि वह जनसँख्या के अनुपात में लोगो को रोजगार के अवसर नहीं उपलब्ध करा पा रहा है। मुझे मजदूर वर्ग से लेकर उच्च शिक्षित युवा वर्ग तक के लोग रोजगार के लिए भटकते हुए दिखाई देतें हैं।
ये तो हुआ शहर का परिदृश्य, अब मैं आपको ग्रामीण परिदृश्य दिखाना चाहूँगा।
अभी मैं अपने गाँव गया और वहाँ चल रहे कृषि कार्य को देखा और उसे समझा तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।
आज कल ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य बहुत जोरों से चल रहा है। खरीफ की बुवाई चल रही हैं। मैंने यहाँ देखा की धान के रोपाई के लिए श्रमिक ढूढ़ने पर नहीं मिल रहे। और कृषि के लिए ही नहीं बल्कि अगर आपको किसी और कार्य के लिए भी श्रमिक चाहिए तो भी जल्दी नहीं मिलेंगें।
अब यदि हम गौर करें तो हमें कितना विरोधाभास देखने को मिलेगा कि एक तरफ लोग रोजगार पाने के लिए लाइन लगाये खड़े है और दूसरी तरफ रोजगार के लिए लोग नहीं मिल रहे है।
अब मुझे समझ में नहीं आता है कि इसमें किसका दोष है, लोगों का या सिस्टम का?
मैंने शिक्षित लोगों को मनरेगा से भी कम वेतन पर, यहाँ तक कि उससे आधे वेतन पर भी काम करते हुए देखा है। एक तरफ कृषि कार्य को करने के लिए लोग नहीं हैं और दूसरी तरफ लोग इतने कम वेतन पर भी कार्य करने को तैयार हैं।
अभी हाल में ही WHO ने एक रिपोर्ट जारी किया है कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा तनावग्रस्त लोग भारत में रहते हैं, करीब 25 प्रतिशत लोग। मतलब प्रत्येक 4 लोगों में 1 लोग तनावग्रस्त हैं। मुझे इसका मुख्य कारण बेरोजगारी ही प्रतीत होता है।
मुझे समझ में नहीं आता है कि लोग इतनी छोटी मोटी नौकरी करके अपने आप को कैसे संतुष्ट कर लेते हैं, जबकि उनके पास कृषि या अन्य रोजगार को चुनने का विकल्प होता है। हमारे देश के नीति निर्माताओं को किसी ऐसी योजना का निर्माण करना चाहिए जिससे कृषि और लघु उद्दोग से विमुख हो रहे लोगों को पटरी पर लाया जा सके। और गाँव से हो रहे पलायन को रोका जा सके।

जय हिन्द!

आपका
रवि प्रकाश गुप्ता

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